बौद्धिक संपदा अधिकार से भारत की आर्थिक प्रगति को मिलेगा बल

Jan 24, 2025 - 21:30
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बौद्धिक संपदा अधिकार से भारत की आर्थिक प्रगति को मिलेगा बल

बलिया : जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय में शुक्रवार को बौद्धिक संपदा और विकसित भारत @ 2047 पर आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला का समापन हुआ। विज्ञान एवं तकनीकी परिषद, उत्तर प्रदेश के द्वारा अनुदानित इस कार्यशाला के दूसरे दिन के तीसरे तकनीकि सत्र की वक्ता प्रो. अनुराधा बनर्जी, सेवा निवृत्त प्रोफेसर, बीएचयू ने अपने वक्तव्य में कहा कि वेद, उपनिषद और पुराण जंगलों की परम्परा नहीं है बल्कि जीवन को जीवंत बनाने की परम्परा और ज्ञान है। उन्होंने भारतीय ज्ञान परम्परा और बौद्धिक सम्पदा अधिकार के संबंधों पर प्रकाश डाला।

कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. संजीत कुमार गुप्ता ने कहा कि वर्तमान समय में बौद्धिक सम्पदा अधिकार को संरक्षित करने से लघु और कुटीर उद्योगों को बल मिलेगा जिससे आर्थिक प्रगति सम्भव है। कार्यशाला के चौथे तकनीकी सत्र के वक्ता मुहर्रम अली उर्फ हशम तुराबी ने कहा कि पेटेंट से वस्तु का महत्त्व बढ़ जाता है, इससे उद्योग प्रोत्साहित होता है और अंततः अर्थव्यवस्था में प्रगति होती है।

कार्यशाला के पाँचवें तकनीकी सत्र में वक्ता प्रो. जी. एन. तिवारी सेवानिवृत्त प्रोफेसर, आईआईटी, दिल्ली ने कॉपीराइट, पेटेंट आदि के व्यावहारिक पहलुओं को बताया। कहा कि कठिन परिश्रम और अनुशासन के साथ सटीक लक्ष्य निर्धारण कर आगे बढ़ने से कोई भी ज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में आशातीत उपलब्धियाँ अर्जित कर सकता है। शोध का क्षेत्र सभी के लिए समान अवसर उपलब्ध कराता है। 

कार्यशाला संयोजक डॉ. नीरज कुमार सिंह रहे। तृतीय सत्र का धन्यवाद ज्ञापन डॉ विजय शंकर पाण्डेय एवं चतुर्थ सत्र का धन्यवाद ज्ञापन डॉ.शशि भूषण ने किया। कार्यक्रम के तृतीय और चतुर्थ सत्र का संचालन डाॅ. अभिषेक मिश्र ने किया तथा पंचम सत्र का संचालन डॉ. प्रमोद शंकर पाण्डेय ने किया।

कार्यशाला के समापन के उपरांत सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र वितरित किया गया। इस अवसर पर कुलसचिव एस. एल. पाल ने धन्यवाद ज्ञापन किया। वित्त अधिकारी आनंद दूबे, डॉ. प्रियंका सिंह, डॉ. अजय कुमार चौबे, डॉ. विनीत सिंह एवं विश्वविद्यालय के प्राध्यापकगण, शोधार्थी, विद्यार्थी एवं कार्यशाला में शामिल सहभागी आदि उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम की सफलता में डॉ. संजीव कुमार, डॉ. विजय शंकर पाण्डेय आदि की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

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