सुदिष्ट बाबा का मेला : बांसुरी की दिलकश धुन और सब्जी-जलेबी का जायका

बैरिया, बलिया : पूर्वांचल का ऐतिहासिक सुदिष्ट बाबा के धनुष यज्ञ मेला अपने पूरे शबाब पर है।मेले में देश के विभिन्न कोने से आए बांसुरी विक्रेताओं के चेहरे पर इस बार चमक देखने को मिल रही है। घूम-घूम कर बांसुरी बेच रहे बांसुरी विक्रेताओ के बांसुरी के मनमोहक धुन लोगों को सहज ही अपने और आकर्षित कर रहा है। अभिभावक के साथ मेला घूमने आए बच्चे बांसुरी खरीदने के लिए अभिभावकों से जिद करते देखे जा रहे हैं। उनकी जीद पूरी भी हो रही है। बांसुरी की मनमोहक धुन बच्चों को अपनी और सहज ही खींच रही है।
ऐसा माना जाता है कि मुरलीधर श्रीकृष्ण ने सर्वप्रथम बांसुरी बजाई थी। उन्होंने इसका आविष्कार भी किया था। जब बचपन में श्रीकृष्ण गाय चराने मधुबन जाते थे तो अकेलेपन से बचने के लिए उन्होंने जंगल में बांस की मुरली का निर्माण किया और उससे ध्वनि निकलने का अविस्मरणीय आविष्कार किया। मुरली बांसुरी को कहते हैं, जिसका आविष्कार भगवान श्रीकृष्ण ने किया था। तब से बांसुरी को हिंदू धर्म का पवित्र वाद्य यंत्र माना जाता है।
बांसुरी केवल बांस से बनाई जाती है। बांस का होना बांसुरी के लिए अनिवार्य है।क्षेत्र के सहतवार निवासी राजकुमार बताते हैं कि उनके क्षेत्र के आधा दर्जन लोग मेले में बांसुरी बजाते हुए घूम कर मेले में बांसुरी बेचते हैं। बांसुरी विविध रंग की है, और उसका मूल्य भी अलग-अलग है। इसी तरह नरही के बांसुरी विक्रेता राजकिशोर का कहना है कि हमारे क्षेत्र से भी 6 लोग बांसुरी बेचने के लिए मेले में आए हैं।
सुदिष्ट बाबा के धनुष यज्ञ मे मेला के विभिन्न आकर्षणों के बीच बांसुरी वाले खास चर्चा का विषय बन गए हैं। अपनी बांसुरी से ऐसे मधुर और दिलकश धुन निकल रहे हैं। जो मेले में आए लोगों को मंत्र मुग्ध कर रहा है। बांसुरी वादक अपनी कला का प्रदर्शन फिल्मी और पुराने गीतों और शास्त्रीय संगीत के जरिए कर रहे हैं। कई सदाबहार गीतों के धुन जब उनकी बांसुरी से निकलती है। तो छोटे बच्चों से लेकर बूढ़े तक हर उम्र के लोग बांसुरी वादको के कला का फैन बन जा रहे हैं।
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